राजस्थान के प्रमुख लोक सम्प्रदाय
👉 सभी धर्मों के अनुयायी प्राचीन काल से ही यहां निवास करते है । सगुण व निर्गुण भक्ति धारा का समन्वय इस भूमि की विशेषता रही है । राजस्थान के प्रमुख सम्प्रदाय निम्न प्रकार है :-1. वल्लभ सम्प्रदाय :- वैष्णव सम्प्रदाय में कृष्ण उपासक कृष्ण वल्लभी या वल्लभ कहलाये । कृष्ण भक्ति के बाल स्वरूप के इस मत की स्थापना वल्लभाचार्य द्वारा 16वीं सदी के प्रारम्भिक दशक में की गई । उन्होने वृन्दावन में श्रीनाथ मन्दिर की स्थापना की । नाथद्वारा (राजसमन्द) में वल्लभ सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ है । वल्लभाचार्यजी की देश के विभिन्न भागों में स्थित चौरासी बैठकों में से राजस्थान में एकमात्र बैठक पुष्कर में स्थित है । इस सम्प्रदाय की विभिन्न पीठे निम्न है -
1. मथुरेश जी, कोटा
2. विट्ठल नाथ जी, नाथद्वारा
3. गोकुल नाथ जी, गोकुल
4. गोकुल चन्द्र जी कामवन, भरतपुर
5. द्वारिकाधीश जी कांकरौली (राजसमन्द)
6. बालकृष्ण जी, सूरत (गुजरात)
7. मदन मोहन जी कामवन (भरतपुर)
इस प्रकार पुष्टीमार्गीय सम्प्रदाय की अधिकांश पीठें राजस्थान में स्थित है। इस सम्प्रदाय में मन्दिर को हवेली, दर्शन को झांकी तथा ईश्वर की कृपा को पुष्टि कहा जाता है, इस कारण यह सम्प्रदाय पुष्टिमार्गी सम्प्रदाय भी कहलाता है। वल्लभ सम्प्रदाय को लोकप्रिय बनाने का श्रेय आचार्य वल्लभ के पुत्र विट्ठलदास द्वारा स्थापित "अष्टछाप कवि मण्डली" को दिया जाता है ।
2. निम्बार्क सम्प्रदाय :- आचार्य निम्बार्क द्वारा स्थापित यह वैष्णव दर्शन "हंस सम्प्रदाय" के नाम से जाना जाता है । दक्षिण के तेलगू ब्राह्मण निम्बार्क ने द्वैताद्वैत दर्शन का प्रचार किया । द्वैताद्वैत को भेदाभेद या सनक सम्प्रदाय भी कहते है । राजस्थान में वैष्णव संत आचार्य निम्बाक्र के अनुयायियों की प्रधान पीठ सलेमाबाद (किशनगढ़) में स्थित है । भारत में मुख्य पीठ "वृन्दावन" में है । राजस्थान में इस मत का प्रचार परशुराम देवाचार्य ने किया ।
3. शक्ति सम्प्रदाय :- शक्ति मतावलम्बी शक्ति दुर्गा की पूजा विभिन्न रूपों में करते है । क्षत्रिय समाज में 52 शक्ति पीठों की पूजा की जाती है ।
4. गौड़ीय सम्प्रदाय :- इसके प्रवृतक गौरांग महाप्रभु चैतन्य थे। राजस्थान में आमेर राजपरिवार ने गोविन्द देवजी के मन्दिर का निर्माण करवाया तथा गौड़ीय सम्प्रदाय को विशेष महत्व दिया । ब्रज क्षेत्र में करौली में मदन मोहन जी का प्रसिद्ध मन्दिर है ।
5. वैष्णव सम्प्रदाय :- विष्णु को इष्ट मानकर उसकी आराधना करने वाले वैष्णव कहलाये । इस सम्प्रदाय में ईश्वर प्राप्ति हेतु भक्ति, कीर्तन, नृत्य आदि को प्रधानता दी गई है । वैष्णव भक्तिवाद के कई सम्प्रदायों का अविर्भाव हुआ।
6. रामानन्दी सम्प्रदाय :- इस सम्प्रदाय के प्रमुख संस्थापक 15वी. सदी में रामानन्द थे । इसकी प्रधान पीठ गलताजी में है । इनके द्वारा उत्तरी भारत में प्रवर्तित मत रामानन्द सम्प्रदाय कहलाया जिसमें ज्ञानमार्गी रामभक्ति का बाहुल्य था । कबीर, धन्नाजी, पीपाजी, सेनानाई, सदनाजी, रैदास आदि इनके प्रमुख शिष्य थे। जयपुर नरेश सवाई मानसिंह ने रामानन्द सम्प्रदाय को संरक्षण दिया एवं "राम रासा” (राम की लीला) ग्रन्थ लिखवाया । यह सम्प्रदाय राम की पूजा कृष्ण की भांति एक रसिक नायक के रूप में करते है। रामानन्द के शिष्य पयहारी दास जी ने नाथ पंथ का प्रभाव समाप्त कर दिया ।
7. नाथ सम्प्रदाय :- नाथ पंथ के रूप में शैव मत का एक नवीन रूप पूर्व मध्य काल में उद्भव हुआ । यह वैष्णव सम्प्रदाय की ही एक शाखा है । नाथ मुनि इसके संस्थापक थे । शाक्त सम्प्रदाय जब अपने तांत्रिक सिद्धों व अभिचार से बदनाम हो गया तो इसकी स्थापना हुई । जोधपुर के महामन्दिर में मुख्य पीठ है । ये हठयोग साधना पद्धति पर बल देते थे । मत्स्येन्द्र नाथ, गोपी चन्द, भर्तृहरि, गोरखनाथ आदि इस पंथ के प्रमुख साधु हुए । राजस्थान में नाथ पंथ की दो प्रमुख शाखाएँ है।
1. बैराग पंथ :- इसका केन्द्र पुष्कर के पास राताडूंगा है।
2. माननाथी पंथ :- इसका प्रमुख केन्द्र जोधपुर का महामन्दिर है जो मानसिंह ने बनवाया था ।
8. शैव सम्प्रदाय :- भगवान शिव की उपसना करने वाले शैव कहलाते है। कापालिक सम्प्रदाय में भैरव को शिव का अवतार मानकर पूजा की जाती है। इस सम्प्रदाय के साधु तांत्रिक व शमशानवासी होते है और अपने शरीर पर भस्म लपेटते है । मध्यकाल तक शैव मत के चार सम्प्रदायों पाशुपात, लिंगायत या वीर शैव एवं कश्मीरक का अविर्भाव हो चुका था । पाशुपात सम्प्रदाय का प्रवर्तक दण्डधारी लकुलीश को माना गया है ।